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आखिर कौन हैं नीम करोली बाबा जहाँ गये हैं Facebook और Apple के मालिक ?

आखिर कौन हैं नीम करोली बाबा जहाँ गये हैं Facebook और Apple के मालिक ?

नीम करोली बाबा आश्रम कैंची धाम: क्या है 15 जून के दिन के पीछे का इतिहास

 

कैंची आश्रम का इतिहास और नीम करोली बाबा क्यों प्रसिद्ध है?

कैंची आश्रम उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह कुमाऊं मण्डल की पहाड़ियों में बसा हुआ एक सुंदर और एकांत आश्रम है। यह आश्रम नैनीताल से लगभग 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हर दिन यहां सैकड़ों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं।

कैंची आश्रम वर्ष में अधिकांश समय बंद रहता है क्योंकि पहाड़ी जगह में बसा होने के कारण यह बहुत ठंडा होता है। आश्रम के नियम बहुत सख्त हैं, यहां रहने वाले लोगों को आश्रम में होने वाली सुबह और शाम की आरती में भाग लेना अनिवार्य है।

कैंची में बाबा जी के मंदिर का निर्माण कब हुआ था?

वर्ष 1973 को 10 सितंबर की रात्रि के समय बाबा जी ने अपना भौतिक शरीर त्याग दिया था। जिसके बाद बाबा जी के अस्थियों से भरे हुए कलश को कैंची धाम में स्थापित किया गया। इसके बाद वर्ष 1974 में बिना किसी डिजाइन और योजना बाबा जी के मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया। मंदिर निर्माण के इस पवित्र कार्य में बाबा जी के सभी भक्तों ने अपनी इच्छा से सहयोग किया।

मंदिर के निर्माण कार्य की शुरुआत इसमें लगे हुए राजमिस्त्रियों ने सुबह स्नान के बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए “महाराजजी की जय” का नारा लगाते हुए की। निर्माण कार्य के दौरान बाबाजी के भक्तों ने श्री राम, जय-राम, जय-राम गाते हुए कीर्तन किया और माताओं ने ई पर “रामनाम” लिखकर इसे मजदूरों को दिया। निर्माण कार्य के समय “बाबा नीम करौली महाराज की जय” के नारों से पूरा वातावरण गूंज उठा।

Neem Karoli Baba

neem karoli baba

15 जून का खास दिन

बाबा नीम करौली महाराज के मंदिर का निर्माण 1976 के समय पूर्ण हुआ। मंदिर निर्माण के बाद 15 जून 1976 को महाराज जी की मूर्ति की स्थापना और प्राण एक गई। इसीलिए 15 जून के दिन को कैंची आश्रम में बड़े ही उत्सव के साथ मनाया जाता है और आश्रम के लोगों के लिए ये सबसे खास दिन है। इसके साथ-साथ यह भी कहा जाता है की महाराज जी ने कैंची धाम की प्राण प्रतिष्ठा के लिए स्वयं 15 जून के दिन को तय किया था।

15 जून 1976 के दिन कैंची धाम की प्राण प्रतिष्ठा और मूर्ति की स्थापना समारोह से पहले यज्ञ संपन्न किए गए। बाबा जी के भक्तों द्वारा ढोल, घड़ियाल, संख और घंटा आदि की ध्वनि के माध्यम से कैंची मंदिर पर कलश को स्थापित करके ध्वजारोहण कर समारोह का प्रारंभ किया गया। भक्तों की तालियों की आवाज कांची मंदिर की पहाड़ियों में गूंज उठी। पूरे वातावरण में हर्ष और उल्लास छा गया। बताया जाता है कि उस समय कई भक्तों को बाबाजी के होने का वास्तविक आभास होने लगा। इस प्रकार वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए और निर्धारित विधि के साथ महाराजजी की मूर्ति की स्थापना की गई। भक्तों द्वारा कहा जाता है कि बाबाजी महाराज मूर्ति के रूप श्री कैंची धाम में आज भी विराजमान हैं जिन्हें देखकर उनके वास्तविक रूप का आभास होता है।

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